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पढाई के बाद बाद सन्तान की नौकरी और व्यवसाय की चिन्ता हर माता पिता को होती है। बच्चे जवानी और अपनी उमंग के कारण उन्हे कौन से क्षेत्र में जाना है, उसे भूल जाते है और दूसरों की देखा-देखी अपनी वास्तविक नॉलेज को भूलकर दूसरों के चक्कर में पड कर खुद को बरबाद कर लेते है। जब वे अपनी योग्यता को नहीं दिखा पाते है तो वे गलत कार्यों की तरफ़ बढ जाते है और उनका जीवन जो सहज रास्ते पर जा रहा था वह कठिनाइयों की तरफ़ चला जाता है। दिग्भ्रम हो जाने पर लाख कोशिश करने पर भी बच्चे अपनी जगह पर वापस नही आ पाते है और आते है तब तक उनका बहुमूल्य समय बरबाद हो गया होता है। बच्चे को सही रास्ते पर ले जाने के लिये वैदिक रूप से कुछ उपाय बताये गये है।
रात को सोते समय बच्चे के सिरहाने उसकी दाहिनी तरफ़ पानी का एक लोटा या गिलास रखना चाहिये जिससे रात को सोते समय कुविचार उसके सुषुप्त मस्तिक पर असर नही दे पायें। बच्चे के जगने पर उसके पास जरूर उपस्थित रहें। जितना बच्चा जगने के बाद आपको देखेगा, उतना ही वह दिन भर आपकी तस्वीर को वह अपने दिमाग में रखेगा। अधिक समय तक आपको अपने सामने पाने पर वह कभी आपको अलग नही कर पायेगा और गलती करने पर आपकी ही तस्वीर उसके दिमाग में आकर उसे गलत काम से रोकेगी।
बच्चे को अपने हाथ से खाना परोसना चाहिये, बनाया चाहे किसी ने भी हो उसे बच्चे की रुचि के अनुसार अगर आपके हाथ से परोसा गया है तो वह उसके शरीर में उसी तरह से लगेगा जिस प्रकार से बचपन में माँ का दूध लगता है। बच्चे को दूसरों की नजर जरूर लगती है, चाहे वह अपने ही घर वालों की क्यों न हो, शाम को बच्चा जब बिस्तर पर सोने जाये तो एक पत्थर को बच्चे के ऊपर से ओसारा करने के बाद किसी पानी से धोकर एक नियत स्थान पर रख देना चाहिये। जिस दिन खतरनाक नजर लगी होगी या कोई बीमारी परेशान करने वाली होगी वह पत्थर अपने स्थान पर नही मिलेगा अथवा टूटा मिलेगा।